स्वामी सन्त प्रसाद जी महराज का जीवन परिचय :-
जो व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन गुरु / आराध्य अथवा अपने ईष्टदेव के चरणों की सेवा में समर्पित कर देता है, वह बहुत बड़ा पुण्यात्मा महापुरुष है और उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है । अर्थात गुरु की कृपा से उसे अलौकिक शक्तियां स्वतः ही प्राप्त हो जाता हैं । ऐसे ही बाबा श्री कमला पंडित जी ब्रह्मदेव के प्रथम सेवक - स्वामी श्री भक्त पवार महराज जी हुये थे और इन्हीं भक्त पवार की वंशावली में भक्ति-धारा के परम्पराओं का निर्वाहन करने वाली आठवीं भक्त पीढ़ी में महन्त - स्वामी श्री सन्त प्रसाद महराज जी हुये थे ।
जिनका जन्म सन् १९२३ ई.में हुआ था । इनके पिता का नाम - स्वामी श्री शिव बालकदास था । जो बाबा श्री कमला पंडित ब्रह्मदेव जी के सातवें महाभक्त थे । माता का नाम - सुखदेई देवी था, जो एक कुशल गृहणी थी । साथ ही साथ बाबा का चरणों में असीम आस्था थी । स्वामी श्री सन्त प्रसाद महराज जी के एक छोटे भाई भी थे जिनका नाम - रामसेवक महराज जी था ।
समस्त भक्त परिवार ही भांति बहुत ही सरल-शान्त और विनम्र स्वभाव के तथा दृढ़ निश्चयी थे I जिनकी अनन्त श्री बाबा कमला पंडित ब्रह्मदेव जी के चरणों में सच्ची प्रीति थी । स्वामी सन्त प्रसाद जी बचपन से ही वे कुशाग्र बुद्धि के थे जिनकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा गाँव के ही निकटवर्ती विद्यालय में ही पांचवीं तक की पढ़ाई हिन्दी ,संस्कृत भाषा में पूर्ण किये थे । साथ में अनन्त श्री बाबा कमला पंडित ब्रह्मदेव जी की पूजा-पाठ व भक्ति आराधना भी करते रहते थे । क्योंकि अपने पिता की पूजा-पाठ अर्चना को देखकर उनके मन में बचपन से ही ईश्वर में अगाध आस्था और विश्वास जाग उठा था । चाहे जो कोई भी ऋतु ( ग्रीष्म ,वर्षा अथवा शरद ) हो परन्तु दिनचर्या में प्रातःकाल में उठकर नित्यक्रिया स्नान करने के पश्चात् अनन्त श्री बाबा कमला पंडित ब्रह्मदेव जी के ईर्द-गीर्द जगह की साफ-सफाई कर पूरे मनोभावों से नित्यप्रति ही पूजा-अर्चना करते थे ।
समयानुसार खेती-गृहस्थी का कार्य भी सम्भालते थे । अन्न -भोजन की तरफ बहुत ही कम ध्यान देते थे, जिसके कारण शरीर से दुबले-पतले थे, परन्तु आत्मविश्वास एवं साहस से भरपूर थे । उनकी युवावस्था में आवश्यकता से अधिक भक्ति देखकर माता-पिता को अधिक चिन्ता हुई कि - मेरा पुत्र अभी छोटी उम्र में ही साधू - सन्यासी हो जायेगा इस कारण उनका विवाह करवाना चाहा ।
एक दिन उनके माता-पिता ने पुत्र (सन्तप्रसाद जी) से कहा कि बेटा अब हमारी अवस्था भी ढ़ल रही है और चाहते हैं कि घर में बहू आये, जो कम से कम हमारे बुढ़ापे में सेवा करेगी जिससे हमारा बुढ़ापा तो आराम से कट सकेगा ! कारण कि तुम्हारी उम्र भी गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने की हो गई है और हमारी भी इच्छा है कि अब तुम्हारा विवाह करवा दें ।
पिता जी की बात सुनकर वे बोले पिता जी मैं अपना पूरा जीवन - श्री कमला पंडित ब्रह्मदेव जी की भक्ति में समर्पित कर चुका हूं… क्षमा करें , मेरी स्वप्न में भी विवाह करने का विचार नहीं किया हूं और मोह-माया के जाल में नहीं फंसना चाहता । मेरे लिए हमारे आराध्य देव ही सबकुछ हैं तथा उनकी सेवा-भक्ति में ही मेरा तन-मन और जीवन समर्पित है ।
उनकी ऐसी बातों को सुनकर उनके माता-पिता बहुत चिन्तित हुये और सोचने लगे कि बाबा अब आपकी सेवकाई करने वाले पुजारी परिवार की पीढ़ी संकट में पड़ रही है अब आप ही उचित मार्गदर्शन करें। तत्पश्चात् बाबा कमला पंडित ब्रह्मदेव जी के समाधि के समक्ष जाकर उनसे विनती करने लगते हैं कि - हे ब्रह्मदेव आप ही अब हमारा मार्गदर्शन करें और हमारे पुत्र को विवाह के लिए मति बदलें प्रेरित करें । तब कुछ दिनों के पश्चात् सन्तप्रसाद जी ने अपने माता-पिता को अधिक चिन्ताग्रस्त देखकर अपना मन बदला और विवाह करने के लिए राजी हुये । उनका विवाह हुआ परन्तु दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा, क्योंकि पूजा-पाठ के अतिरिक्त अपनी पत्नी के तरफ ध्यान नहीं देते थे । इसी कारण कुछ ही वर्ष उपरान्त उनकी प्रथम पत्नी से सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
उनको ग्रामवासियों व सगे संबंधियों द्वारा बहुत समझाने पर फिर से दूसरे विवाह करने को राजी हुए और मनोहरा देवी से दूसरा विवाह भी सम्पन्न हुआ । इनके गृहस्थ जीवन में चार सुपुत्र हुये - रामनयन, रामशंकर, श्याम सुन्दर और मुरली प्रसाद ।
स्वामी सन्तप्रसाद जी द्वारा प्रतिदिन ब्रह्मदेव जी के साथ ही साथ भगवान शिव जी , हनुमान जी व आदिशक्ति मां जगदम्बा का भी पूजा-पाठ, चालीसा व आरती करते थे । इनके ऊपर हनुमान जी की साक्षात् कृपा दृष्टि थी और मां दुर्गा की छाया व आशीर्वाद था । वे आजीवन ब्रह्मचारी इसीलिए रहना चाहते थे कि - हनुमान जी की कृपा-दृष्टि आजीवन उनके ऊपर सदैव ही बनी रहे, किन्तु विवाह के उपरान्त उनके शरीर पर हनुमान जी की छाया नहीं थी परन्तु आशीर्वाद अवश्य था , जिसका आभास उन्हें था । क्योंकि माता-पिता के आदेश का पालन सबसे ही सर्वोपरि था इसलिए कि सेवक को वंश-वृद्धि की अति अवश्यकता भी थी इसीलिए विवाह करने के लिए राजी हुए थे । घर परिवार चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है इस कारण अपने से समस्त परिवार के जीविकोपार्जन अथवा धनोपार्जन हेतु खेती-बारी के अतिरिक्त कभी- कभी बढ़ईगिरी का कार्य भी किया करते थे और इस कार्य में वे दक्ष थे।
सन्त भीखादास जो गुलालपंथ के महान सन्त थे , उनके परम् प्रिय शिष्य बाबा गोविन्द साहब के मठाधीश गुरु - बाबा श्री सीताराम दास जी महाराज के द्वारा भाई व पत्नी सहित गुरुमुख हुए थे । जैसा कि उनके पिता स्वामी श्री शिवबालकदास जी की यही गुरुभूमि रही है, वर्तमान में केवटला नामक स्थान जो किछौछा से लगभग १५ कि.मी. दूर उत्तर दिशा में सरयू नदी के किनारे स्थित है । वर्तमान में गुरु जी का समाधि-स्थल केवटला धाम में ही स्थित है । इनके पिता- स्वामी शिवबालक दास जी का स्वर्गवास सन् १९७३ ई ० में हुआ था जो बाबा कमला पंडित जी के सातवें महन्त थे I
इनके भाई राम सेवकदास जी विवाह नहीं किए । वे अनन्त श्री बाबा कमला पंडित ब्रह्मदेव जी की सेवा - भक्ति में अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किये । अन्त समय में अपने गुरु की सेवा करते हुए सन् १९९२ ई. में गुरुभूमि केवटला में ही अपने प्राणों का त्याग किये तथा जहां उनकी जल समाधि सरयू नदी में उनकी अन्तिम इच्छानुसार स्वामी सन्तप्रसाद जी द्वारा दी गई थी ।
स्वामी सन्तप्रसाद जी महराज हवन व जाप का कार्य समयानुसार नियमित रूप से ही किया करते थे । जो महान वेद- शास्त्रों के ज्ञाता अर्थात् विद्वान पुरुष थे - जो रामायण, श्री मद्भागवत गीता, चारों वेद , अट्ठारह पुराण, दुर्गा सप्तशती, चालीसा, आरती इत्यादि प्रमुख धार्मिक ग्रन्थों व पुस्तकों का पाठ / अध्यन निरन्तर ही किया करते थे अर्थात् समस्त पुराणों व शास्त्रों के वेत्ता थे और सनातन धर्म पर पूर्ण विश्वास था और मानवता के सच्चे रक्षक थे ।
आजीवन ही शुद्ध भोजन, सादा जीवन, उच्च विचार, ढृढ़निश्चयी, साहसिक व आत्मविश्वासी, उत्तम व उदार प्रवृत्ति, लग्नशील व मेहनती मिलनसार और प्रभावशाली पुरुष थे । उनके अन्दर कर्मठशीलता व ईमानदारी कूट-कूटकर भरी हुई थी , राजनीति से कोसों दूरी थी फिर भी राजनैतिक लोग उनका सदा ही सम्मान करते थे । वे सत्यवादी प्रवृत्ति के थे तथा छल, कपट व बेइमान लोगों से सदा ही दूरी बनाए रखते थे। गलत बातें कत्तई बर्दाश्त नहीं करते थे । साधू-महात्माओं तथा विद्वानों का सदैव ही सम्मान करते थे । वे किसी जाति धर्म का भेद-भाव कभी न करते हुये दरबार में उपस्थित सभी भक्तों-जनों को एक सामान दृष्टि से देखते, गरीबों की सेवा करते व सबसे ही उचित मानवीय व्यवहार करते थे । इन्हीं मुख्य कारणों से उनका सभी ही जाति वर्ग के लोग उनकी बातों को मानते तथा आदर व मान-सम्मान भी करते थे ।
किन्तु इनकी सफलाताओं को देखकर कुछ गैर हिन्दू समुदाय के संकीर्ण मानसिकताओं के व्यक्तियों द्वारा द्वेष भावना रखने वाले कुछ आसमाजिक तत्वों के षड्यंत्रों का बार-बार शिकार भी होना पड़ा । उनको परेशान करने व उन्हें जान से मारने का भी प्रयास आततायियों द्वारा होता रहा । इन्हीं प्रमुख कारणों से इनका जीवन चुनौतियों से परिपूर्ण और बहुत ही संघर्षशील रहा । लेकिन जिस पर संत बाबा श्री कमला ब्रह्मदेव जी की कृपा दृष्टि हो तो - क्या उसका कोई बाल भी बांका कर सकता है ? अथवा नहीं । जब उन्हें कहीं किसी भी कार्य से जाना होता तो निःसंकोच व निडर भाव से संत श्री बाबा कमला पंडित जी ब्रह्मदेव का नाम व आशीर्वाद लेकर घर से निकल जाते थे । उन पर बाबा की कृपा सदैव ही बनी रहती थी ।
जैसे कि यह बात बिल्कुल सत्य ही कही गई है -* सत्यमेव जयते * अथवा - " सत्य भले ही परेशान हो सकता है परन्तु पराजित नहीं ।"
तथा यह भी कहा जाता है -
“जाको राखे साइयां मार सके न कोय ।
बाल न बांका कर सके चाहे जग बैरी होय ।।"
बाबा सन्तप्रसाद जी महराज के जीवनकाल में यह बात एकदम ही सत्य सिद्ध हुई, जो बिल्कुल ही सत्य घटित - घटनाओं पर आधारित है ।