About The Kamla Baba & Dham
जनपद – अम्बेडकर नगर (अकबरपुर) मुख्यालय से लगभग जनपद आजमगढ़ लगभग ९० किलोमीटर पूरब दिशा में स्थित है जो एक दूसरे जिले को राजमार्ग (NH-233) से जोड़ता है। सम्पूर्ण भारत में कपड़ा उद्योग और व्यापार लिए एक प्रसिद्ध नाम टाण्डा भी यहीं पर है- जहां पर एन०टी०पी०सी० अर्थात् थर्मल पावर प्लांट भी मौजूद है । इन अम्बेडकर नगर व आजमगढ़ जिला मुख्यालयों को जोड़ने वाले मुख्य मार्गों के मध्य भाग में बसखारी बाजार स्थित है, जो लगभग २५ किलोमीटर पूरब दिशा में व आजमगढ़ मुख्यालय से लगभग ६५ किलोमीटर पश्चिम दिशा में स्थित है | यहां पर थाना और विकास खंड (ब्लॉक) दोनों ही स्थित है । बसखारी बाजार से – जलालपुर मुख्य मार्ग पर लगभग ४ किलोमीटर दक्षिण में किछौछा नामक नगर स्थित है । जो अक्षांश (Latitude)- 26.430700 , देशान्तर (Longitude)- 82.766502 गोलार्ध पर स्थित है । किछौछा जो कि – आज वर्तमान समय में नगर पंचायत है, जिसे ‘अशरफपुर किछौछा‘ नाम से भी जाना जाता है । किछौछा की पावन भूमि पर एक प्राचीन चमत्कारी मंदिर “कृपानिधान, भक्तवत्सल अनंत श्री बाबा कमला पंडित जी महाराज का प्रसिद्ध तपोभूमि एवं समाधि-स्थल व उनके गुरु बाबा तर्पणनाथ जी की पावन तपोभूमि रही है । जो “ नगर पंचायत – अशरफपुर किछौछा ” कार्यालय से लगभग २ किलोमीटर उत्तर-पूर्व दिशा में तालाब (बगहा झील) के किनारे । जहां बाबा जी का समाधि स्थल स्थित है इस जगह पर भक्त परिवार की कुटी होने की वजह से आम बोलचाल की भाषा में लोग इसे कुटिया नाम से भी सम्बोधित करते हैं । सदियों से “ कृपानिधान भक्तवत्सल दीनानाथ अनंत श्री बाबा कमला पंडित जी महाराज का ” – यह ऐतिहासिक समाधि स्थल ( देवस्थान / शक्ति-पीठ मठ ) वास्तव में गंगा-यमुनी संस्कृति की मिसाल पेश कर रहा है । जहां समरसता व एकता रूपी धागे को पिरोती हुई संगम जैसी अद्भुत झलक यहां पर देखने को मिलती है । जहाँ पर जांति-पांति / धर्म / सम्प्रदाय इत्यादि का कोई भेद-भाव नहीं है अथवा समस्त ही मानव जाति के लिए भी समान रूप से अटूट श्रद्धा व विश्वास का प्रमुख केंद्र है । जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा, भक्ति और विश्वास के साथ आते हैं – उनकी समस्त मनोवांछित इच्छायें अवश्य ही पूर्ण होती हैं । इस ब्रह्मस्थान / शक्तिपीठ पर तरह-तरह के असाध्य रोग बीमारियों से पीड़ित दीन-दुखियों को नियमानुसार – दर्शन, हवन, जप, आरती, कथा, पूजा-पाठ आदि कर्म करने अथवा करवाने मात्र से ही असाध्य रोगों व दुःख-दारिद्रों से छुटकारा मिलता है । ग्रह-बाधाओं से पीड़ित व्यक्तियों को ग्रह-बाधाओं से मुक्ति मिलती है । ब्रह्म बाधा, भूत-प्रेत बाधा, किया- करतब, जादू-टोना इत्यादि कारणों का निवारण होता है । निःसंतान दंपतियों को सन्तान सुख की प्राप्ति भी होती है । समस्त प्रकार से शारीरिक, मानसिक व आर्थिक आदि समस्त प्रकार के क्लेशों से घिरे व्यक्ति अवश्य ही स्वास्थ्य लाभ पाते हैं । यहाँ प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु-भक्तों अथवा याचकों के सुख-समृद्धि व आनंदमयी जीवन-लाभ हेतु व मंगल-कामना पूर्ति के निमित्त भक्तों की भारी-भीड़ लगी रहती है । इसी सुन्दरवन की पावन भूमि के पूर्वी भाग से सटा हुआ निषादों का छोटा सा गाँव भी हुआ करता था, जो आज भी बृहद रूप में मौजूद है । प्राचीन लोकप्रिय कथाओं के अनुसार – एक सिद्ध एवं तपस्वी महायोगी सन्त पुरुष बाबा तर्पणनाथ जी परम शिव भक्त अर्थात भगवान शिव के अनेकों नामों में एक नाम भगवान भूतनाथ के रूप में भी विख्यात है । कहा जाता है कि – वे नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी थे जो गुरु-शिष्य परम्पराओं का निर्वाहन करते थे । उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही दीन-हीन, दुःखी व लाचार मनुष्यों का उद्धार करने और मानवता की रक्षा हेतु दृढ़-संकल्प किये थे । उनकी अलौकिक शक्तियों के कारण ही लगभग ५०० शिष्य बने थे । लोक प्रसिद्ध दंतकथाओं के अनुसार – अपना गृहस्थ जीवन यापन कर रहे निःसंतान दम्पत्ति आत्माराम व उनकी धर्मपत्नी – ज्ञानमती देवी जो महागुरु बाबा तर्पणनाथ जी के परम भक्त थे, जो गृहस्थ जीवन का निर्वाहन करते थे । साथ ही साथ तन-मन व समर्पण भाव से नित्यप्रति महागुरु बाबा तर्पणनाथ जी की सेवा-भक्ति किया करते थे । दोनों की अपार अनुग्रह से प्रभावित होकर महागुरु बाबा तर्पणनाथ जी ने आशीर्वाद इस शर्त पर दिया था कि- जब उनका पुत्र ५ वर्ष का हो जायेगा तो उस बालक को मुझे सौंपना होगा । फिर उनके आशीर्वाद से सन् १२४४ ई. दिन – शुक्रवार को कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी ( देवोत्थानी एकादशी / देवउठनी एकादशी / प्रबोधनी एकादशी ) के पवित्र / पावन शुभ दिन पर तथा ब्रह्म मुहूर्त के पावन बेला में एक बहुत सुन्दर बालक का जन्म हुआ । वह बालक जब सवा माह का हुआ अर्थात् सूतक समाप्त होने के उपरांत वे दोनों अपने तेजस्वी पुत्र को लेकर महागुरु तर्पणनाथ व भगवान भूतनाथेश्वर महादेव का दर्शन कर आशिर्वाद प्राप्त करने गये । महागुरु बाबा तर्पणनाथ जी ने कमल पुष्प की भांति अत्यंत सुन्दर व सुकोमल बालक देखकर अत्यंत प्रसन्नचित हुये तथा नामकरण कर उनका नाम- कमलनाथ रखा । धीरे- धीरे समय बीतता गया…क्योंकि समय बीतते देर नहीं लगती है I अब वह समय निकट आ चुका था कि – जब दोनों ( आत्माराम व ज्ञानमती ) को अपना संकल्प/ वचन जो अपना हृदय कठोर करके भी पूरा करना था । जब कमलनाथ की उम्र ५ वर्ष हुई तो गुरुवचन को पूर्ण करने हेतु अपने हृदय को कठोर कर पुत्रमोह का त्याग कर कमलनाथ को महागुरु तर्पणनाथ जी के चरण कमलों में समर्पित किये । तेजस्वी बालक “कमलनाथ” की देख-रेख शिक्षा-दीक्षा गुरु द्वारा प्राप्त होने लगी गुरु तर्पणनाथ जी से प्राप्त ज्ञान व विद्या को आप आसानी से सीख जाते अर्थात् विलक्षण,आध्यात्मिक, प्रतिभा के धनी थे । अपनी ज्ञान-कौशल के आधार पर आप पांच सौ शिष्यों में सबसे श्रेष्ठ एवं महाज्ञानी थे । इस प्रकार वृद्ध सन्त अवधूत महायोगी बाबा तर्पणनाथ ने अपने प्रिय शिष्य कमलनाथ को अपनी अध्यात्मिक शक्तियां प्रदान कर उन्हें पूर्णतः निपुण किया तथा पीड़ित मनुष्यों की मानवता-युक्त सेवा संस्कार भरकर पूर्णतः सफल किया । समय बीता बालक कमलनाथ, महागुरू बाबा तर्पणनाथ जी के परमप्रिय मेधावी शिष्य बने । कालान्तर में गुरु तर्पणनाथ जी ने समाधिस्थ होने से पहले कमलनाथ को सभी प्रकार से सुयोग्य देखकर भूतनाथ मंदिर का उत्तराधिकारी घोषित करते हुये अपने समस्त शिष्यों अर्थात् उनके गुरुभाईयों के देख-रेख व सुरक्षा का दायित्व आपको सौंपकर अपने जीवन के अन्तिमक्षणों में समाधिस्थ हुए । महागुरु बाबा तर्पणनाथ जी द्वारा प्राप्त हुई समस्त अलौकिक शक्तियों व विद्याओं का तत्परता पूर्वक सदुपयोग करते हुये समस्त जनमानस का निःशुल्क ही कल्याण करते थे । आपका यश और कीर्ति दूर-दूर तक फैलने लगी और क्षेत्रीय एवं दूरस्थ जनमानस में पूज्यनीय स्थान प्राप्त हुआ । आपके चमत्कारों से प्रभावित हो लोग आपको ‘कमलनाथ’ नाम के साथ-साथ अब “पंडित कमला” नाम से भी सम्बोधित किये जाने लगे थे । इस प्रकार श्रद्धालु-भक्तों का आवागमन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था । सन्त महागुरु बाबा तर्पणनाथ के समस्त अन्तिम इच्छओं को पूर्ण करते हुए सरोवर तथा मंदिर का जीर्णोद्धार व अन्य कई देवी देवताओं के मन्दिरों का निर्माण कराया । अपने योग-शक्तियों के चमत्कारिक प्रभाव से कमला पंडित ने बिहार प्रान्त के कटिहार जनपद की रियासत के मुस्लिम शासक की व्याधि-ग्रस्त पुत्री के पेट से सुई और लवंग की उल्टी कराकर लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया। रोग-मुक्त राजकुमारी के कृतज्ञ पिता ने भाव-विह्वल होकर कहा कि – “महाराज आप कमला पंडित नहीं बल्कि कमाल पंडित हो” – अतः मैं आपकी क्या सेवा करूँ ! किन्तु अवधूत गुरु ने उस शासक से कुछ भी लेना स्वीकार नहीं किया । इस कारण वह शासक भी उनसे अत्यधिक प्रभावित हुआ । तभी से “कमला पंडित” और “कमाल पंडित” दोनों ही नाम से विख्यात हो गये, जो आज तक जन-मानस के मध्य प्रचलित होता चला आ रहा है । इस स्थान से अनेकों तरह से परेशान – गूँगे वाणी लाभ, निःसन्तान महिलायें माँ बनने का गौरव प्राप्त किया। कुष्ठ-रोग, भूत-बाधाओं, जादू-टोना, किया-कराया, खिलाया-पिलाया आदि विचित्र प्रकार की बिमारियों से ग्रस्त व त्रस्त जो रोगी आते हैं , वे लोग रोग मुक्त होते हैं, कभी किसी को निराश होकर वापस जाते न देखा न तो सुना गया । जब आप वृद्धावस्था को प्राप्त हुए तो आपकी इच्छा अब ब्रह्मलीन होने की हुई । आप अपना समस्त कार्यभार और स्थान की गरिमा को बचाये रखने हेतु अपने परम् करीबी प्रिय शिष्य भक्त पवार को महन्त घोषित किये । सन् १३८०ई. में अगहन मास की पूर्णिमा तिथि को आप समाधिस्थ हुये थे । भक्त पवार पर ब्रह्मस्वरूप सन्त श्री कमला पंडित ब्रह्मदेव की कृपा सदैव बरसती रही, और गुरु के आदेशों का पालन अपनी अन्तिम सांस तक किये । भक्त पवार समाधि स्थल की सेवा तथा देख रेख करने लगे और उन्ही की पीढ़ी दर पीढ़ी आपकी सेवा करते चले आ रहे हैं । आपकी (भक्त पवार जी महाराज ) आठवीं पीढ़ी स्वामी संत प्रसाद जी को प्रत्यक्ष रूप से दर्शन दिए, हर कार्य के लिए आदेश देते और आप १५ दिसम्बर २०१९ ई. में नश्वर शरीर का त्याग किया। इनके आखिरी इच्छानुसार टाण्डा के महादेवा घाट सरयू नदी में जल समाधि दी गई और दिव्य शरीर पर स्थित पंचतत्व स्वरूप पांच पुष्पों की आशीषात्मक समाधि दी गई । स्वामी सन्तप्रसाद महराज जी ने कहा था कि मेरे इस समाधि पर श्रद्धा से सिर झुकाने वाले मनुष्य पर बाबा श्री कमला पंडित ब्रह्मदेव जी की कृपा अवश्य ही होगी ।
इन्हीं के सुपुत्र वर्तमान महंथ स्वामी श्री रामनयन दास महराज जी एवं पुजारी श्री रामशंकर जी महराज, पुजारी श्री श्यामसुंदर, पुजारी श्री मुरली प्रसाद जी के देख रेख में प्रतिवर्षकार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी के दिन बड़े ही परम् पूज्यनीय अनंत बाबा श्री कमला पंडित महाराज जी का जयंती समारोह हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । जिनमें तीन दिवसीय विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है और दूर दराज से हजारों की संख्या में भक्त लोग आते हैं । पूजा-पाठ, दर्शन करते हैं उनकी ब्रह्म बाधा कुष्ट रोग संतान हीनता, पागलपन,आदि प्रकार की बलाय बाधाओं से मुक्ति मिलती है । आपके शरण में हर संप्रदाय के लोग आते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है किछौछा (दरगाह) में आये हुए सभी भक्त, श्रद्धालुओं का दर्शन आपके बगैर दर्शन किये बिना अधूरा ही रहता है । इस ब्रह्म स्थान पर अनेक मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, उच्च शिक्षा प्राप्त लोग – ( डाक्टर, इन्जीनियर, वकील, प्रोफेसर आदि ) बिना किसी लाव-लश्कर लिए गोपनीयता के साथ आते हैं और माथा टेककर जीवन-लाभ पाते हैं । यह दिव्य मंदिर आधुनिक विज्ञान और तर्क-वितर्क को परे करता हुआ यही एकमात्र अलौकिक मंदिर है । यहाँ अनेक बुद्धि-जीवियों का आवागमन वर्ष के बारहों महीने होता रहता है । प्राचीन काल से इस अलौकिक ब्रह्मस्थान की दिव्यता की झलक आज इक्कीसवीं सदी में भी देखने को मिल रही है । आज भी भक्तों के पूजा-पाठ, जप, हवन आरती एवं विनय प्रार्थना करने मात्र से भक्त लोग ठीक होते हैं । यही मुख्य कारण है कि -भारत के अनेकों राज्यों व जिलों से भक्तों की अटूट आस्था दिन प्रतिदिन इस ब्रह्मस्थान के प्रति बढ़ती जा रही है ।